पिछले कुछ समय में हमने इस समाज के दो चेहरे देखे

Posted: अगस्त 25, 2013 in Poem

पिछले कुछ समय में हमने इस समाज के दो चेहरे देखे | एक अत्यंत घिनोना, डरावना, अपराध, आतंक और दहशतगर्दी का | इसी समाज में छुपे वो चेहरे इतने घिनोने थे कि उन्हें इंसान मानना इस समाज के लिए सहज ना था | फिर चाहे वो गोवाहाटी की घटना हो या दामिनी की | चाहे वो आंतकवाद हो या नक्सलवाद | चाहे वो अपराध हो, दुष्कर्म हो या फिर व्यर्थ की बयानबाज़ी |  इस तरह की घटनाएँ जब भी होती है, जहाँ कहीं होती है, इंसानियत के चीथड़े-चीथड़े कर देती है और मानवता को तार तार कर देती है | 

 

ये लहू इंसानों का है या इसका रंग कुछ और है

आदमी के भेष में ये कौन आदमखोर है…….. !         

 

 

ये चेहरा था क्रिया का |  और एक चेहरा था प्रतिक्रिया का | इन सब घटनाओं के अंजाम बेहद दर्दनाक थे, मगर इसके दुसरे पहलू पर गौर किया जाये तो जिस तरह की क्रिया हुई उतनी जबरजस्त प्रतिक्रिया भी हुई | जिस तरह अपार जन सैलाब इन घटनाओं के विरोध में सड़कों पर उतरा वो एक बहुत बड़े परिवर्तन की तरफ इशारा कर गया | अपराधों को चुपचाप सहन करने वाले और डर के साये में जीने वाले समाज का हमने एक नया चेहरा देखा | एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा हुआ “आखिर क्यूँ और आखिर कब तक?” अपने मुल्क को सरकारों के भरोसे छोड़ कर अपनी निजी जिंदगी में मस्त जनता की चेतना जाग्रत हुई और हमारे सब्र का बांध टूटा | नतीजे चाहे ज्यादा हमारे हक़ में ना रहे हो मगर इन विषयों पर चर्चा चौराहों तक पहुँची और हमने जवाब माँगना शुरू किया, ये अहम बात है |

 

और एक पहलू पर गौर किया जाये तो वो है इन सबमें कला और साहित्य की भागीदारी | इतिहास गवाह है कि किसी भी राष्ट्र के निर्माण और विध्वंश में उस मुल्क के साहित्य का बहुत बड़ा योगदान होता है  | साहित्य किसी भी मुल्क का नक्शा बना और बिगाड़ सकता है | 

 

 

कलम की ताकत है ये, अलख भी जगाती है आग भी लगाती है

चुप रहे तब तलक ठीक है वरना, जन्नत इस जमीं को बनाती है !         

 

हमने देखा कि अपनी इसी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए इन घटनाओं के विरोध में साहित्य और कला जगत के कई बड़े नाम सामने आये | फिर चाहे वो ट्वीटर के जरिये हो, फेसबुक के माध्यम से हो या सीधे सड़कों पर उतरने तक | कई मसलों को दिशा देने में मीडिया की भूमिका भी अहम रही | ये सब बेहद सुखद और अच्छे संकते हैं |

 

इन सबमें और एक पहलू पर विचार किया जाये तो वो है युवाओं की भागीदारी | कई मुद्दों पर हमने देखा कि बीना किसी अनुभवी नेतृत्व के युवा पीढ़ी इकठ्ठा होकर विरोध में खुलकर सामने आयी | ये भी एक बेहद अच्छा संकेत है क्यूँकी जीस पीढ़ी को आने वाले समय में इस मुल्क को दिशा देनी है उन्हें बखूबी अपनी जिम्मेदारी का अहसास है, ये बेहद संतोषजनक है |  किसी भी राष्ट के उत्थान के लिए बेहद जरूरी है उर्जा और अनुभव का तालमेल और वो हमने इस बार खूब देखा.

 

जरा भरोसा रखना जलती शमा के इन परवानों में 

वक्त की तारीख बदल देंगे एक दिन ये नोजवां….

लौट कर आने दो इन्हें जरा…………………….. 

तोड़ कर जाम मयखानों से मैदानों में…………….   

 

लेकिन कहीं ना कहीं युवा पीढ़ी दिशा-भ्रमित भी है | वो हर उस शख्श को नायक मान लेगें जिसे उनके सामने नायक बनाया दिखाया जा रहा है | अपनी उर्जा, जोश और अनुभव को किस जगह लगाना है, शायद ये समझने में हम कहीं ना कहीं असमर्थ रहे हैं | आये दिन कुछ  ना कुछ ऐसी घटनाएँ होती रहती है जो इसको सत्यापित करती है | अभी हाल ही की दिल्ली की बाइक राइडर्स स्टंट की घटना को ही लीजिये |

बहुत अच्छा है अगर आपके शरीर में इतनी उर्जा और खून में इतना उबाल है | ये मुल्क इस समय एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ हमारे सामने कई समस्याएँ है और उन्हें सुलझाने के लिए इस देश को जवान, उर्जावान, उबलते हुए गरम खून की बेहद सख्त जरुरत है,  मगर अपनी उर्जा को सही दिशा में लगायें | आप इस मुल्क की तक़दीर और तस्वीर बदलने की सामर्थ्य रखते हैं. |

 

दिखा दो दुनिया को लहू में हमारे भी उबाल आता है….. 

मचल जाएँ हम जब जिस और उस और तूफान आता है !    

 

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